aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "had-e-nigah"
हद्द-ए-निगाह शाम का मंज़र धुआँ धुआँछाने लगा है ज़ेहन के अंदर धुआँ धुआँ
हद्द-ए-निगाह धूप सी बिखरी हुई लगीतेरे बग़ैर एक सज़ा ज़िंदगी लगी
थी जिस की सल्तनत कभी हद्द-ए-निगाह तकमिलती नहीं है उस को कहीं अब पनाह तक
शबाहतें सी ग़ुबार-ए-हद-ए-निगाह में हैंपस-ए-फ़लक कहीं अहल-ए-ज़मीं भी रहते हैं
वो आरज़ूएँ वो तिश्ना-कामीहद-ए-निगह तक सराब सा कुछ
ये क्या जगह है दोस्तो ये कौन सा दयार हैहद-ए-निगाह तक जहाँ ग़ुबार ही ग़ुबार है
हद-ए-निगाह तक बुलंद फ़लसफ़ेघरों के साएबान बन के रह गए
माँ है न यहाँ शजर है कोईता-हद-निगाह धूप ही धूप
उस ने जलाया मेरे नशेमन को फिर कहाहद्द-ए-निगाह तक तुझे सहरा दिखाई दे
मंज़र हद-ए-निगाह तलक लाल लाल हैहर सम्त से ग्रीन कलर ले गया कोई
हर सम्त ख़ामुशी का घना इक हिसार थाहद्द-ए-निगाह सिलसिला-ए-कोहसार था
क्यूँ बदले हुए हैं निगह-ए-नाज़ के अंदाज़अपनों पे भी उठ जाती है अग़्यार के होते
अब ढूँडने चले हो मुसाफ़िर को दोस्तोहद-ए-निगाह तक न रहा जब ग़ुबार भी
हद्द-ए-निगाह शो'ले उगलती रही ज़मींहैरत की बात है कि धुआँ कोई भी न था
नाकामी-ए-हयात का हासिल कोई नहींहद्द-ए-निगाह लगता है मंज़िल कोई नहीं
है गिरफ़्तार-ए-अना हर कोई ता-हद-निगाहज़ुल्मत-आबाद में अब किस को पुकारे क़ैदी
हद-ए-निगाह यहाँ धूप ही का सहरा है'हिरा' बताओ कहाँ जाएँ तिश्नगी के लिए
हद्द-ए-निगाह तिलक फैला है अन-देखा आसेबगोशा-ए-दिल में झिलमिल झिलमिल दीप इबादत वाले
'नजमा' निगाह-ए-शौक़ को हद्द-ए-निगाह तकजल्वों से फ़ैज़-याब किए जा रही हूँ मैं
हद-ए-निगाह तलक रात का ख़ला है 'अर्श'कोई निगाह करे भी तो जुस्तुजू किस की
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