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ग़ज़ल
हम इश्क़ से क्या वाक़िफ़ वाक़िफ़ हैं तो सिर्फ़ इतना
आग़ाज़ हलाकत है अंजाम ख़ुदा जाने
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
मुक़द्दर ने दिया है हाथ में कासा हलाकत का
गदा हूँ उस परी-पैकर का जो टुकड़ा है आफ़त का
इमदाद अली बहर
ग़ज़ल
जिस की ईमा पे किया शैख़ ने बंदों को हलाक
वही बंदों का ख़ुदा है मुझे मा'लूम न था