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ग़ज़ल
ये रूह रक़्स-ए-चराग़ाँ है अपने हल्क़े में
ये जिस्म साया है और साया ढल रहा है मियाँ
नसीर तुराबी
ग़ज़ल
ऐ मौज-ए-बला उन को भी ज़रा दो चार थपेड़े हल्के से
कुछ लोग अभी तक साहिल से तूफ़ाँ का नज़ारा करते हैं
मुईन अहसन जज़्बी
ग़ज़ल
मेरा मज़हब इश्क़ का मज़हब जिस में कोई तफ़रीक़ नहीं
मेरे हल्क़े में आते हैं 'तुलसी' भी और 'जामी' भी
क़ैसर शमीम
ग़ज़ल
बरहमी हल्क़ा-बगोशों की उन्हें मंज़ूर है
फूट डलवाती हैं लाखों में तुम्हारी चूड़ियाँ