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ग़ज़ल
ख़लील फ़रहत करंजवी
ग़ज़ल
'सुख़न' की बज़्म में 'नादिर' उसी के सर पे सेहरा है
रहा जो हम-नवा-ए-बुलबुल-ए-हिन्दोस्ताँ हो कर
नादिर काकोरवी
ग़ज़ल
'फ़िराक़'-ए-हम-नवा-ए-'मीर'-ओ-'ग़ालिब' अब नए नग़्मे
वो बज़्म-ए-ज़िंदगी बदली वो रंग-ए-शाइ'री बदला
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
नातिक़ गुलावठी
ग़ज़ल
हक़ीक़त-आश्ना रंग-ए-रुख़-ए-बातिल नहीं होता
कि ग़ुंचा टूट कर भी हम-नवा-ए-दिल नहीं होता
फ़ैज़ झंझानवी
ग़ज़ल
वो जुनूँ-मक़ाम-ओ-जुनूँ-अदा वो तुम्हारा 'बासित'-ए-बा-वफ़ा
मगर उस का हम-सर-ओ-हम-नवा कोई दूसरा नहीं मिला
बासित उज्जैनी
ग़ज़ल
मिरे हम-नवा मिरे हम-सफ़र मिरे पास आ कोई बात कर
मिरे वास्ते तू ही मो'तबर मिरे पास आ कोई बात कर
किफ़ायत हुसैन आवान
ग़ज़ल
जल गया धूप में यादों का ख़ुनुक साया भी
बे-नवा दश्त-ए-बला में कोई हम सा भी नहीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
ज़िंदा हो रस्म-ए-जुनूँ किस की नवा-रेज़ी से
अब रहा कौन यहाँ शो'ला-ब-जाँ हम-नफ़सो
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
समझ के उस को भी ग़म-ख़्वार-ओ-हम-नवा 'रिज़वाँ'
हदीस-ए-दिल किसी दिलबर के रू-ब-रू की थी
रिज़्वानुल्लाह
ग़ज़ल
फ़र्दंग-ओ-चंग-ओ-नय दफ़ बीन-ओ-रुबाब-ओ-सुरनी
हम-साज़-ओ-हम-नवा हैं लेते हैं तान आठों