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ग़ज़ल
दिल को जिस वक़्त ख़याल सफ़-ए-मिज़्गाँ होगा
पा-ए-जाँ में ख़लिश-ए-ख़ार-ए-मुग़ीलाँ होगा
मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी
ग़ज़ल
बिस्तर मिरा है ख़ार-ए-मुग़ीलाँ बसान-ए-क़ैस
लैला की है तुझे सफ़-ए-मिज़्गान की क़सम
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
सफ़-ए-मिज़्गाँ की जुम्बिश का किया इक़बाल ने कुश्ता
शहीदों के हुए सालार जब हम से तुमन बिगड़ा
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
हँसे जो वो मिरे रोने पे तो सफ़-ए-मिज़्गाँ
न समझो तुम उसे दीवार-ए-क़हक़हा समझो
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
छीना था दिल को चश्म ने लेकिन मैं क्या करूँ
ऊपर ही ऊपर उस सफ़-ए-मिज़्गाँ में पट गया
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
था दिल तो चीज़ क्या सफ़-ए-मिज़्गाँ के सामने
इस मा'रके में शुक्र ये है बच गया दिमाग़
बासिर सुल्तान काज़मी
ग़ज़ल
आँसू तो चीर कर सफ़-ए-मिज़्गाँ निकल गया
लड़का था ख़ुर्द-साल पे दिल का करख़्त था
शेर मोहम्मद ख़ाँ ईमान
ग़ज़ल
मतानत-आफ़रीं नज़रें करम-गुस्तर सफ़-ए-मिज़्गाँ
सितम ढाने को उठ्ठे हो सितम ढाना भी आता है
रज़ा जौनपुरी
ग़ज़ल
हो जावे है उस की सफ़-ए-मिज़्गाँ से मुक़ाबिल
इस दिल को मिरे देखियो क्या बे-जिगरी है
मीर मोहम्मदी बेदार
ग़ज़ल
रुस्वा करेंगे तुझ कूँ जगत में निहाल-ए-अश्क
अंझुवाँ कूँ दश्त और सफ़-ए-मिज़्गाँ को शाम जान