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ग़ज़ल
बस्ती में कोई ख़ौफ़ पनप सकता नहीं है
अल-हम्द कि मौजूद क़बीले में हैं सादात
मोहम्मद मुस्तहसन जामी
ग़ज़ल
मअनी नियाज़ के इक निकलें हैं बस-कि इस में
अलहम्द में हमारी इय्याक ज़िंदगी है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
लिल्लाह अल-हम्द वो आया है सोएम में मेरे
मेरे मातम में वो शामिल तो हुआ तीसरे दिन
अबुल बक़ा सब्र सहारनपुरी
ग़ज़ल
लिल्लाह अल-हम्द किसी तरह मैं क़ासिर ही नहीं
लाई मज़मून मिरी फ़िक्र-ए-रसा एक से एक
शाह अकबर दानापुरी
ग़ज़ल
अलिफ़ अल-हम्द का क़श्क़ा है मेरे नूर-ए-ईमाँ का
बना हम-रिश्ता ज़ुन्नार-ए-गुलू तार-ए-रग-ए-जाँ का
पंडित त्रिभुवननाथ ज़ुतशी ज़ार देहलवी
ग़ज़ल
वक़ार बिजनोरी
ग़ज़ल
दयार-ए-इश्क़ में ऐसे भी हैं मक़ाम बहुत
जहाँ जुनून का होता है एहतिराम बहुत
हामिद-उल-अंसारी अंजुम
ग़ज़ल
चमन में जब बहार आई तो दीवाने मचल उट्ठे
हुआ जब ज़िक्र-ए-चश्म-ए-मस्त पैमाने मचल उट्ठे