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ग़ज़ल
अगर मैं हर्फ़-ए-ग़लत हूँ तो राएगाँ कर दे
मैं जिस वरक़ पे मिलूँ उस की धज्जियाँ कर दे
हुसैन ख़ां दानिश
ग़ज़ल
नफ़रतें मिट जाएँगी हर्फ़-ए-ग़लत की तरह से
हाँ मगर हर्फ़-ए-ग़लत इक दास्ताँ बन जाएगा
अनीस सुलताना
ग़ज़ल
मिटा चुके थे जो मुझ को मिसाल-ए-हर्फ़-ए-ग़लत
ज़बाँ पे उन की मेरा नाम है ये क्या कम है