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ग़ज़ल
दश्त-ए-ग़ुर्बत में मिरी आँखों से टपका है जो आज
क्या ये आँसू एक हर्फ़-ए-राएगाँ हो जाएगा
अब्दुल अज़ीज़ फ़ितरत
ग़ज़ल
हर्फ़-ओ-अल्फ़ाज़-ओ-म’आनी के हिजाबों में न थी
बात चेहरों पर जो लिक्खी थी किताबों में न थी
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
हिसार-ए-हर्फ़-ओ--हुनर तोड़ कर निकल जाऊँ
कहाँ पहुँच के ख़याल अपनी वुसअ'तों का हुआ
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
मुद्दतों के बाद फिर कुंज-ए-हिरा रौशन हुआ
किस के लब पर देखना हर्फ़-ए-दुआ रौशन हुआ