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ग़ज़ल
गिनो सब हसरतें जो ख़ूँ हुई हैं तन के मक़्तल में
मिरे क़ातिल हिसाब-ए-ख़ूँ-बहा ऐसे नहीं होता
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
हज़ारों हसरतें वो हैं कि रोके से नहीं रुकतीं
बहुत अरमान ऐसे हैं कि दिल के दिल में रहते हैं
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
बर आएँ हसरतें क्या क्या अगर मौत इतनी फ़ुर्सत दे
कि इक बार और ज़िंदा शेवा-ए-इश्क़-ए-जवाँ कर लूँ