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ग़ज़ल
है 'शकील-इब्न-ए-शरफ़' के दिल में बस ये आरज़ू
हश्र में दुनिया कहे इस को दिवाना आप का
शकील इबन-ए-शरफ़
ग़ज़ल
इब्न-ए-चमन है तेरी वफ़ाओं पे जाँ-निसार
अपना बना के तू ने मुकम्मल क्या मुझे
अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन
ग़ज़ल
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
इन दिनों हज़रत-ए-यूसुफ़ की वो ना-क़दरी है
नहीं बुढ़िया भी ख़रीदार बुरी मुश्किल है
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
फिर किसी कूफ़े में तन्हा है कोई इब्न-ए-अक़ील
उस के साथी सब के सब सरकार की टोली में थे