aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "hijraa.n"
जो हम पे गुज़री सो गुज़री मगर शब-ए-हिज्राँहमारे अश्क तिरी आक़िबत सँवार चले
ख़ुश होते हैं पर वस्ल में यूँ मर नहीं जातेआई शब-ए-हिज्राँ की तमन्ना मिरे आगे
हम कि रूठी हुई रुत को भी मना लेते थेहम ने देखा ही न था मौसम-ए-हिज्राँ जानाँ
सुना है हश्र हैं उस की ग़ज़ाल सी आँखेंसुना है उस को हिरन दश्त भर के देखते हैं
ज़े-हाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल दुराय नैनाँ बनाए बतियाँकि ताब-ए-हिज्राँ नदारम ऐ जाँ न लेहू काहे लगाए छतियाँ
सब्र था एक मोनिस-ए-हिज्राँसो वो मुद्दत से अब नहीं आता
या-रब ग़म-ए-हिज्राँ में इतना तो किया होताजो हाथ जिगर पर है वो दस्त-ए-दुआ होता
किस शबाहत को लिए आया है दरवाज़े पे चाँदऐ शब-ए-हिज्राँ ज़रा अपना सितारा देखना
मर चुक कहीं कि तू ग़म-ए-हिज्राँ से छूट जाएकहते तो हैं भले की व-लेकिन बुरी तरह
आह तस्कीन भी अब 'सैफ़' शब-ए-हिज्राँ मेंअक्सर औक़ात बड़ी देर के बा'द आई है
ताब-ए-नज़्ज़ारा नहीं आइना क्या देखने दूँऔर बन जाएँगे तस्वीर जो हैराँ होंगे
मेरी तरह तू ने शब-ए-हिज्राँ नहीं काटीमेरी तरह इस तेग़ पे कट कर नहीं देखा
नहीं शिकायत-ए-हिज्राँ कि इस वसीले सेहम उन से रिश्ता-ए-दिल उस्तुवार करते रहे
मसाफ़त-ए-शब-ए-हिज्राँ के बा'द भेद खुलाहवा दुखी है चराग़ों की आबरू कर के
वस्ल ओ हिज्राँ हैं और दुनियाएँइन ज़मानों में माह-ओ-साल कहाँ
हमें ये इश्क़ तब से है कि जब दिन बन रहा थाशब-ए-हिज्राँ जब इतनी सरसरी होती नहीं थी
मुझे था शिकवा-ए-हिज्राँ कि ये हुआ महसूसमिरे क़रीब से हो कर वो ना-गहाँ गुज़रे
ज़िंदगी फैली हुई थी शाम-ए-हिज्राँ की तरहकिस को इतना हौसला था कौन जी कर देखता
आए थे सभी तरह के जल्वे मिरे आगेमैं ने मगर ऐ दीदा-ए-हैराँ नहीं देखा
किस किस अपनी कल को रोवे हिज्राँ में बेकल उस काख़्वाब गई है ताब गई है चैन गया आराम गया
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