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ग़ज़ल
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
मिरी मश्शातगी की क्या ज़रूरत हुस्न-ए-मअ'नी को
कि फ़ितरत ख़ुद-ब-ख़ुद करती है लाले की हिना-बंदी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
तुझ से मुक़ाबले की किसे ताब है वले
मेरा लहू भी ख़ूब है तेरी हिना के ब'अद
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
ख़ूँ है दिल ख़ाक में अहवाल-ए-बुताँ पर या'नी
उन के नाख़ुन हुए मुहताज-ए-हिना मेरे बा'द
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
की हक़ से फ़रिश्तों ने 'इक़बाल' की ग़म्माज़ी
गुस्ताख़ है करता है फ़ितरत की हिना-बंदी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
चमकता है शहीदों का लहू पर्दे में क़ुदरत के
शफ़क़ का हुस्न क्या है शोख़ी-ए-रंग-ए-हिना क्या है
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
बन गई नक़्श जो सुर्ख़ी तिरे अफ़्साने की
वो शफ़क़ है कि धनक है कि हिना है क्या है