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ग़ज़ल
ग़ज़ल तो कह दूँ 'रज़ा' ये भी तो इजाज़त हो
जिसे तू हिंदवी कहता था वो ज़बाँ लिख दूँ
कालीदास गुप्ता रज़ा
ग़ज़ल
जल्वा-ए-मुसहफ़-ए-आरिज़ जो नज़र आ जाता
हिंदवी ख़ाल भी सौ जाँ से मुसलमाँ होता
मुंशी ठाकुर प्रसाद तालिब
ग़ज़ल
वो मुंकिर है तो फिर शायद हर इक मकतूब-ए-शौक़ उस ने
सर-अंगुश्त-ए-हिनाई से ख़लाओं में लिखा होगा
जौन एलिया
ग़ज़ल
दिया 'इक़बाल' ने हिन्दी मुसलमानों को सोज़ अपना
ये इक मर्द-ए-तन-आसाँ था तन-आसानों के काम आया
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
फिर हिनाई होने वाले हैं मिरे क़ातिल के हाथ
फिर ज़बान-ए-तेग़ पर रंग-ए-शहाब आने को है
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
نہ ميں اعجمي نہ ہندي ، نہ عراقي و حجازي
کہ خودي سے ميں نے سيکھي دوجہاں سے بے نيازي