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ग़ज़ल
है यही रंग-ए-सुख़न तो 'शाइर' शीरीं-ज़बाँ
तू भी इक दिन तूती-ए-हिन्दुस्ताँ हो जाएगा
आग़ा शाइर क़ज़लबाश
ग़ज़ल
यही पाओगे महशर में ज़बाँ मेरी बयाँ मेरा
मैं बंदा हिन्द वाला हूँ यही हिन्दोस्ताँ मेरा
विनायक दामोदर सावरकर
ग़ज़ल
ये हिंदुस्तान है याँ पर बुतों का रोज़ मेला है
ख़ुदा जाने वो बुत ऐ 'मेहर' देवी है कि दुर्गा है
हातिम अली मेहर
ग़ज़ल
बस मुझ को दाद मिल गई मेहनत वसूल है
सुन ले ग़ज़ल ये बुलबुल-ए-हिन्दुस्ताँ कहीं
आग़ा शाइर क़ज़लबाश
ग़ज़ल
सब से बड़ा नुक़सान हम को ये हुआ तक़्सीम से
इक भाई हिंदुस्तान में इक भाई पाकिस्तान में
राघवेंद्र द्विवेदी
ग़ज़ल
जुज़ 'दाग़' आज बुलबुल-ए-हिन्दुस्ताँ है कौन
कहते हैं हम पुकार के ये सौ हज़ार में
सरदार गंडा सिंह मशरिक़ी
ग़ज़ल
शरीफ़-ए-काबा नित मुझ को सलाम-ए-शौक़ भेजे है
मैं काफ़िर गरचे हिंदुस्तां के बुत-ख़ाने में रहता हूँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
हम भी रखते हैं वफ़ा के शहर में अपना मक़ाम
हक़ बरहमन का नहीं है सारे हिंदुस्तान पर
अबुल फ़ितरत मीर ज़ैदी
ग़ज़ल
सर-ज़मीन-ए-हिंद पर अक़्वाम-ए-आलम के 'फ़िराक़'
क़ाफ़िले बसते गए हिन्दोस्ताँ बनता गया