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ग़ज़ल
उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा
यूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन
बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
रउफ़ रज़ा
ग़ज़ल
अब किसी मूज़ी को जुड़ता हूँ फिर एक भंग घोटना
हो मदद हक़ हो मदद हो हो मदद हाहा मदद
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
कभी तो सुब्ह तिरे कुंज-ए-लब से हो आग़ाज़
कभी तो शब सर-ए-काकुल से मुश्क-बार चले