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ग़ज़ल
उन्हीं अक़्वाम के रहम-ओ-करम पर अब भी जीते हैं
ग़ुरूर-ए-हुर्रियत ने जिन से हासिल की थी आज़ादी
जामी रुदौलवी
ग़ज़ल
जो ख़ुद को दाइयान-ए-हुर्रियत कहते नहीं थकते
उन्हें पूछें ज़रा बुर्हान-वानी किस को कहते हैं
अरशद अज़ीज़
ग़ज़ल
'रम्ज़' वो अहद-ए-ग़ुलामी हो कि दौर-ए-हुर्रियत
इश्तिहार-ए-मुफ़लिसी हिन्दुस्तानी का लिबास
रम्ज़ अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
गुल-अफ़शाँ जो ज़मीं थी वो ज़मीं अब आग उगलती है
अजब ता'बीर देखी हुर्रियत के ख़्वाब की मैं ने
वक़ार मानवी
ग़ज़ल
जगमगाते देख ले फिर हुर्रियत के बाम-ओ-दर
बाद मेरे ये रहे थे कुछ दिनों वीरान से
वजाहत अली संदैलवी
ग़ज़ल
बंदा-ए-ख़्वाहिशात को कहता है कौन अब्द-ए-हुर
चाहिए हुर्रियत अगर दिल को 'अमीं' ग़ुलाम कर
अमीन हज़ीं
ग़ज़ल
किरनों से पूछ अपनी ज़रा मेहर-ए-हुर्रियत
इंसाँ का ख़ून क़तरा-ए-शबनम है इन दिनों