aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "huur-shiyam"
तौबा की मगर नश्शे से उस हूर-शियम नेक्यूँ आतिश-ए-मय नार-ए-जहन्नम नज़र आई
कभी बनता कभी मिटता हूँ शायदमैं अपने वहम का साया हूँ शायद
बे-ख़ुदी की मिसाल हूँ शायदसाग़र-ए-ख़स्ता-हाल हूँ शायद
हो गए हम शिकार फूलों केहैं ग़ज़ब इख़्तियार फूलों के
जो परिंद ख़्वाहिशों के कभी हम शिकार करतेन गिला किसी से रहता न ये दिल फ़िगार करते
हर शिकन वक़्त की पेशानी पे रखी हुई हैहम ने यूँ ज़िंदगी आसानी पे रखी हुई है
यूँ देखने में तो ऊपर से सख़्त हूँ शायदमगर दरून-ए-बदन लख़्त लख़्त हूँ शायद
हम शायद कुछ ढूँड रहे थे याद आया तो रोते हैंताज़ा ताज़ा उस को खो कर जाने क्या क्या खोते हैं
हर शिकन में इबारतें मुज़्मरउस का चेहरा किताब था जानी
ख़ुशबू जैसा महका हूँशायद तेरा लहजा हूँ
ज़ुल्फ़ की हर शिकन में तुझ मेरादिल गिरफ़्तार बाल बाल हुआ
यूँ तो हर शाम उमीदों में गुज़र जाती हैआज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया
हर शाम ये सवाल मोहब्बत से क्या मिलाहर शाम ये जवाब कि हर शाम रो पड़े
हर शिकन फूट फूट कर रोईरात फिर ख़्वाब-ए-कर्बला देखा
मैं हूँ शिकार-ए-फ़ित्ना-ए-एहसास-ए-रंग 'शाम'किस तरह एक जिस्म की तक़्सीम हो गई
याद कुछ तो रहे तुझे हम भीतेरे माथे की हर शिकन में रहे
फिर तुझ तक लौट आया हूँशायद खोटा सिक्का हूँ
कभी हर शाम बे-मंज़र यहाँ थीमगर हर शाम अब बेहद हसीं है
मैं ज़हर रही हर शाम रहीबारिश की हवा बदनाम रही
फिर कोई हादिसा हुआ शायदबिक रहे हैं गली गली अख़बार
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