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ग़ज़ल
इजाज़ा हो गया मोजज़-बयानी का तो हम तेरे
इसी तुख़्म-ए-तहय्युर को शजर कर के दिखाएँगे
ख़ावर जीलानी
ग़ज़ल
ऐसे आहु-ए-रम-ख़ुर्दा की वहशत खोनी मुश्किल थी
सेहर किया ए'जाज़ किया जिन लोगों ने तुझ को राम किया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
तिरे दर से भी निबाहे, दर-ए-ग़ैर को भी चाहे
मिरे सर को ये इजाज़त कभी थी न है न होगी
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
ग़ज़ल
तुम्हारा नाम लिखने की इजाज़त छिन गई जब से
कोई भी लफ़्ज़ लिखता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं