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ग़ज़ल
वो जो बे-रुख़ी कभी थी वही बे-रुख़ी है अब तक
मिरे हाल पर इनायत कभी थी न है न होगी
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
ग़ज़ल
तुम्हारा नाम लिखने की इजाज़त छिन गई जब से
कोई भी लफ़्ज़ लिखता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं