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ग़ज़ल
हुस्न की मेहरबानियाँ इश्क़ के हक़ में ज़हर हैं
हुस्न के इज्तिनाब तक इश्क़ की ज़िंदगी समझ
ख़ुमार बाराबंकवी
ग़ज़ल
ये ग़लत है कुफ़्र है साक़िया मुझे तेरा ही रहा आसरा
तू पिला पिला तू पिला पिला नहीं इज्तिनाब हराम से
ज़की काकोरवी
ग़ज़ल
ख़ुल्द में आ कर शराब-ए-ख़ुल्द से भी इज्तिनाब
जाम-ए-मय से ज़ाहिदा इंकार क़ैसर-बाग़ में
वज़ीर अली सबा लखनवी
ग़ज़ल
कभी मेहरबाँ आँख से परख इस को क्या है ये शय
हमें क्यूँ है सीने में इस सबब इज़्तिराब सा कुछ