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ग़ज़ल
अंधेर-नगरी के शाहज़ादो ये रात बस एक दो घड़ी है
दिलों के घाव चमक उठे हैं लहू की नद्दी उबल पड़ी है
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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अंधेर-नगरी के शाहज़ादो ये रात बस एक दो घड़ी है
दिलों के घाव चमक उठे हैं लहू की नद्दी उबल पड़ी है