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ग़ज़ल
वो भी क्या दिन थे कि था पीने-पिलाने ही से काम
हाए अब चार आँसुओं पर इक्तिफ़ा करता हूँ मैं
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
कम-बिज़ाअत से ख़याल-ए-ख़ाम है कसरत को फ़ैज़
इक्तिफ़ा करता नहीं लश्कर को पानी चाह का
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
तुम्हें जितनी मयस्सर हूँ उसी पर इक्तिफ़ा कर लो
वगर्ना छोड़ जाने का गवारा फ़ैसला कर लो
शाज़िया अकबर
ग़ज़ल
कुछ भी कहते हैं जराहत की मेरे ऐ हमदम
इक्तिफ़ा क्यूँकि करे एक नमक-दाँ कल तक