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ग़ज़ल
लज़्ज़त-ए-नग़्मा कहाँ मुर्ग़-ए-ख़ुश-अलहाँ के लिए
आह उस बाग़ में करता है नफ़स कोताही
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
तुम गुलिस्ताँ से गए हो तो गुलिस्ताँ चुप है
शाख़-ए-गुल खोई हुई मुर्ग़-ए-ख़ुश-इल्हाँ चुप है
मख़दूम मुहिउद्दीन
ग़ज़ल
हो क़ैद-ए-तफ़क्कुर से कब आज़ाद सुख़न-वर
मंज़ूर क़फ़स मुर्ग़-ए-ख़ुश-अलहाँ के लिए है
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
बाग़ सुनसान न कर इन को पकड़ कर सय्याद
बा'द मुद्दत हुए हैं मुर्ग़-ए-ख़ुश-इल्हाँ पैदा
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
'इश्क़ में सुनते तो थे लुत्फ़-ए-जवानी और है
जो मगर गुज़री है हम पर वो कहानी और है
प्रियंवदा इल्हान
ग़ज़ल
दिल ही दिल में आरज़ू जिस की किया करते थे हम
मशवरे भी 'इश्क़ के उस को दिया करते थे हम
प्रियंवदा इल्हान
ग़ज़ल
ख़्वाब चाहे ख़्वाब ही हो दिल लगाने दे मुझे
इस हक़ीक़त से कभी तो जाँ छुड़ाने दे मुझे
प्रियंवदा इल्हान
ग़ज़ल
दिल लगाने हम चले थे दिल के सौ टुकड़े हुए
क्या कहें इक इश्क़ में कार-ए-जुनूँ कितने हुए
प्रियंवदा इल्हान
ग़ज़ल
हसरतों का सिलसिला है ज़िंदगी भर के लिए
इश्क़ क्या है मसअला है ज़िंदगी भर के लिए
प्रियंवदा इल्हान
ग़ज़ल
अपनी सदा सुना के हर इक याँ से चल बसा
गुलशन में कोई मुर्ग़-ए-ख़ुश-इल्हाँ नहीं रहा