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ग़ज़ल
मिरे बाज़ुओं में थकी थकी अभी महव-ए-ख़्वाब है चाँदनी
न उठे सितारों की पालकी अभी आहटों का गुज़र न हो
बशीर बद्र
ग़ज़ल
मिरे बच्चों में सारी आदतें मौजूद हैं मेरी
तो फिर इन बद-नसीबों को न क्यूँ उर्दू ज़बाँ आई
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
शाम से पहले वो मस्त अपनी उड़ानों में रहा
जिस के हाथों में थे टूटे हुए पर शाम के बा'द