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ग़ज़ल
एक हमें आवारा कहना कोई बड़ा इल्ज़ाम नहीं
दुनिया वाले दिल वालों को और बहुत कुछ कहते हैं
हबीब जालिब
ग़ज़ल
चुरा के ख़्वाब वो आँखों को रेहन रखता है
और उस के सर कोई इल्ज़ाम भी नहीं आता
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
मल्लाहों को इल्ज़ाम न दो तुम साहिल वाले क्या जानो
ये तूफ़ाँ कौन उठाता है ये कश्ती कौन डुबोता है
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
किस लिए उज़्र-ए-तग़ाफुल किस लिए इल्ज़ाम-ए-इश्क़
आज चर्ख़-ए-तफ़रक़ा-पर्वाज़ की बातें करो