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ग़ज़ल
ये फ़लक-शिगाफ़ इमारतें मिरे आब ओ गिल से बिछड़ गईं
मिरे आब ओ गिल पे करम न कर तू इमारतों को ज़वाल दे
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
छिपी हुई है चाँदनी सफ़ेद बादलों के बीच
सुकूत की इमारतों पे बिजलियों का रक़्स है