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ग़ज़ल
ज़माने की इनायत है तिरा इनआ'म है साक़ी
हमारे दिल में अब भी हसरत-ए-नाकाम है साक़ी
सुल्तानुल हक़ शहीदी काश्मीरी
ग़ज़ल
निज़ाम-ए-हर-दो-आलम इंतिज़ाम-ए-वुसअ'त-ए-दिल है
ये जो कुछ है वही सब कुछ है सब कुछ इस में शामिल है