आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "inhii"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "inhii"
ग़ज़ल
तरसती है निगाह-ए-ना-रसा जिस के नज़ारे को
वो रौनक़ अंजुमन की है उन्ही ख़ल्वत-गज़ीनों में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
बहुत अज़ीज़ हैं दिल को ये ज़ख़्म ज़ख़्म रुतें
इन्ही रुतों में निखरती है तेरे हिज्र की शाम
मोहसिन नक़वी
ग़ज़ल
बार-हा ख़ुश हो रहे हैं क्यूँ इन्ही बातों पे लोग
बार-हा जिन पे उन्हें आँसू बहाने चाहिएँ