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ग़ज़ल
एक ये दिन जब लाखों ग़म और काल पड़ा है आँसू का
एक वो दिन जब एक ज़रा सी बात पे नदियाँ बहती थीं
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
अगर सच है तुम्हारी मौत का इक दिन मुअय्यन है
तो फिर इस तय-शुदा को ना-गहानी क्यूँ समझते हो
ख़ुशबीर सिंह शाद
ग़ज़ल
तिरा क्या काम अब दिल में ग़म-ए-जानाना आता है
निकल ऐ सब्र इस घर से कि साहिब-ख़ाना आता है
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
बड़े जब से हुए हैं हम फ़क़त रोज़ी में उलझे हैं
सुकूँ का एक दिन भी अब बड़ी मुश्किल से मिलता है
ऋतु सिंह राजपूत रीत
ग़ज़ल
मुक़र्रर है ख़िज़ाँ का एक दिन हर हाल में 'निकहत'
भला गुल-दान में ये फूल क्यों फ़रियाद करता है