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ग़ज़ल
नहीं हवा में ये बू नाफ़ा-ए-ख़ुतन की सी
लपट है ये तो किसी ज़ुल्फ़-ए-पुर-शिकन की सी
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
मोहब्बत का ये अफ़्साना हयात-ए-मुख़्तसर का है
हँसी थोड़े दिनों की है तो रोना उम्र भर का है
अनवर सादिक़ी
ग़ज़ल
हमीदा मोईन रिज़वी
ग़ज़ल
जब भी याद आई मुझे उस से मिलन की ख़ुशबू
मुझ को याद आई बहुत उस के बदन की ख़ुशबू
प्रोफ़ेसर महमूद आलम
ग़ज़ल
इस तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ का अजब मुझ पर असर था
ख़ुद ही वो जला डाला जो यादों का शजर था