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ग़ज़ल
बस ऐ फ़लक नशात-ए-दिल का इंतिक़ाम हो चुका
हँसा था जिस क़दर कभी ज़ियादा उस से रो चुका
साक़िब लखनवी
ग़ज़ल
हज़ारों की जान ले चुका है ये चेहरा ज़ेर-ए-नक़ाब हो कर
मगर क़यामत करोगे बरपा जो निकलोगे बे-हिजाब हो कर
आसी ग़ाज़ीपुरी
ग़ज़ल
बिन देखे उस के जावे रंज ओ अज़ाब क्यूँ कर
वो ख़्वाब में तो आवे पर आवे ख़्वाब क्यूँ कर
जुरअत क़लंदर बख़्श
ग़ज़ल
शब-ए-विसाल के रोज़-ए-फ़िराक़ में क्या क्या
नसीब मुझ से मिरे इंतिक़ाम लेते हैं
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
बहुत हुआ तो मिरी मोहब्बत तिरी गली तक सफ़र करेगी
गुलाब जैसी हिकायतों को इधर उधर मो'तबर करेगी
ख़ुमार कुरैशी
ग़ज़ल
आफ़्ताब शकील
ग़ज़ल
बिना-ए-अर्ज़-ओ-फ़लक हर्फ़-ए-इब्तिदा हूँ मैं
बिखर गया तो समझ लो कि इंतिहा हूँ मैं