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ग़ज़ल
न हिन्दू को मुसलमाँ से अदावत हो अदावत हो
मुसलमाँ को न हिन्दू से कुदूरत हो कुदूरत हो
श्याम सुंदर लाल बर्क़
ग़ज़ल
दिल ने अभी बिछाई है जा-ए-नमाज़-ए-इश्क़
लुक्नत-ज़दा ज़बाँ की इक़ामत क़ुबूल कर
अम्मार यासिर मिगसी
ग़ज़ल
ये ख़िर्क़ा-पोश फ़क़ीरान-ए-ख़ारिक़-उल-आदात
हमारे क़ाफ़िला-हा-ए-नियाज़-ओ-नाज़ के साथ
रईस अमरोहवी
ग़ज़ल
'नज़र' इक़ामत-ए-दुनिया की ख़त्म मुद्दत है
कि हम भी पीर हुए वक़्त-ए-पा-तुराब आया
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
ग़ज़ल
हर एक को जाना पड़ता है दुनिया के मुसाफ़िर ख़ाने से
कुछ रोज़ इक़ामत होती है कुछ रोज़ का मेहमाँ होता है
शंकर लाल शंकर
ग़ज़ल
चार-दिन को है यहाँ शर्त-ए-इक़ामत क्या क्या
फ़ुर्सत-ए-ज़ीस्त में शामिल है मुसीबत क्या क्या
ख़ुर्शीद रिज़वी
ग़ज़ल
इक़ामत के लिए क्या वुसअ'त-ए-कौनैन कुछ कम थी
अबस अंगड़ाई ली तुम ने दिल-ए-नज़्ज़ारा-सामाँ में