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ग़ज़ल
हमें तो मय-कदे का ये निज़ाम अच्छा नहीं लगता
न हो सब के लिए गर्दिश में जाम अच्छा नहीं लगता
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
शर्बत-ए-दीदार की थीं चुस्कियाँ सब के लिए
बंद था 'मसरूर' पर ही आब-ओ-दाना याद है