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ग़ज़ल
दाएरे इंकार के इक़रार की सरगोशियाँ
ये अगर टूटे कभी तो फ़ासला रह जाएगा
इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
मिरे लिए तो है इक़रार-ए-बिल-लिसाँ भी बहुत
हज़ार शुक्र कि मुल्ला हैं साहिब-ए-तसदीक़
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मैं मुजरिम हूँ मुझे इक़रार है जुर्म-ए-मोहब्बत का
मगर पहले तो ख़त पर ग़ौर कर लो फिर सज़ा देना
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
बहुत सँभाला वफ़ा का पैमाँ मगर वो बरसी है अब के बरखा
हर एक इक़रार मिट गया है तमाम पैग़ाम बुझ गए हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
ये इक़रार-ए-ख़ुदी है दावा-ए-ईमान-ओ-दीं कैसा
तिरा इक़रार जब है ख़ुद से भी इंकार हो जाए
असग़र गोंडवी
ग़ज़ल
तअज्जुब में तो पड़ता ही रहा है आइना अक्सर
मगर इस बार उस की आँखों में हैरत ज़ियादा थी