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ग़ज़ल
गुनाह-ए-इश्क़ में इस बात की तस्कीन होती है
हुआ हो जुर्म गहरा तो सज़ा संगीन होती है
डॉ भावना श्रीवास्तव
ग़ज़ल
दो अश्क जाने किस लिए पलकों पे आ कर टिक गए
अल्ताफ़ की बारिश तिरी इकराम का दरिया तिरा