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ग़ज़ल
थे इक़्तिदार में तो ज़माना था अपने गिर्द
लोगों की थी बरात अभी कल की बात है
फ़िरोज़ नातिक़ ख़ुसरो
ग़ज़ल
वबाएँ क़हत ज़लज़ले लपक रहे हैं पय-ब-पय
ये किस का इक़्तिदार है ज़मीं से आसमान तक