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ग़ज़ल
दो अश्क जाने किस लिए पलकों पे आ कर टिक गए
अल्ताफ़ की बारिश तिरी इकराम का दरिया तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
'अश्क' अपने सीना-ए-पुर-ख़ूँ में सैल-ए-अश्क भी
रोक रखता हूँ जिगर के ख़ून की तहलील तक
अश्क अमृतसरी
ग़ज़ल
'अश्क' उसूल-ए-कस्ब-ए-ज़र से तू नहीं है आश्ना
तिश्ना-ए-तकमील है तेरी हमा-दानी हनूज़
अश्क अमृतसरी
ग़ज़ल
दो बोल दिल के हैं जो हर इक दिल को छू सकें
ऐ 'अश्क' वर्ना शेर हैं क्या शाइरी है क्या
इब्राहीम अश्क
ग़ज़ल
अर्ज़-ए-नियाज़-ए-शौक़ से था बे-नियाज़ दिल
मुल्क-ए-हवस में 'अश्क' अकेला ही मस्त था
इब्राहीम अश्क
ग़ज़ल
अहसन अहमद अश्क
ग़ज़ल
हमारे अश्क-ए-ख़ूनीं ने हिनाई रंग लाया है
अरे दिल उस के पाँव पर ये आँखें अब तो मल सकिए