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ग़ज़ल
गायकी में जितने सुर थे खा गई शोरीदगी
शाइरी में जितने भी थे इस्तिआ'रे मर गए
सैयद जॉन अब्बास काज़मी
ग़ज़ल
हवा-ए-ताज़ा पा कर बोस्ताँ को याद करते हैं
असीरान-ए-क़फ़स वक़्त-ए-सहर फ़रियाद करते हैं
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
क्या छोड़ें असीरान-ए-मोहब्बत को वो जिस ने
सदक़े में न इक मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार भी छोड़ा
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
दुखों का कोई भी इस्तिआ'रा नहीं है मुमकिन
दुखों का हर इस्तिआ'रा दुख है हमारा दुख है