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ग़ज़ल
तसव्वुर मुन्कशिफ़-अज़-बाम हो जाने से डरता हूँ
अता-ए-कश्फ़ के इत्माम हो जाने से डरता हूँ
अली मुज़म्मिल
ग़ज़ल
वो राहत-बेज़ियाँ-ज़ारियाँ साबित हुई कितनी हुबाब-आसा
कभी होता न इत्माम-ए-शब-ए-फ़ुर्क़त तो अच्छा था
हया लखनवी
ग़ज़ल
ज़ीस्त आग़ाज़ से इत्माम-ए-सफ़र होने तक
इक मुअ'म्मा ही रही उम्र बसर होने तक
सूफ़ी ज़मज़म बिजनोरी
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
नमाज़-ए-शैख़ हो इत्माम क्यूँकर सरक़ा दुश्मन है
कि टूटे है वुज़ू हर बार जब खाते हैं अ'ह अ'ह कर
वलीउल्लाह मुहिब
ग़ज़ल
सारे रिंद औबाश जहाँ के तुझ से सुजूद में रहते हैं
बाँके टेढ़े तिरछे तीखे सब का तुझ को इमाम किया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
ये है मय-कदा यहाँ रिंद हैं यहाँ सब का साक़ी इमाम है
ये हरम नहीं है ऐ शैख़ जी यहाँ पारसाई हराम है