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ग़ज़ल
अगर उस ज़ुल्फ़-मुश्क-आमेज़ से चुन्नी में बाल आवे
अजब मैं इत्र-ओ-अंबर कासा-ए-नग़फ़ूर से टपके
आरिफ़ुद्दीन आजिज़
ग़ज़ल
है किस के ज़ुल्फ़ का सौदा तुझे ऐ इश्क़ बतला दे
हमेशा इत्र-ए-अम्बर की सी बू आती है तुझ ख़ू में
इश्क़ औरंगाबादी
ग़ज़ल
अगर उस ज़ुल्फ़-मुश्क-आमेज़ सें चीनी में बाल आवे
अजब नें इत्र-ए-अम्बर कासा-ए-फ़ग़्फ़ूर सें टपके
आरिफ़ुद्दीन आजिज़
ग़ज़ल
ख़्वाहिश है मिरा रक़्स-ए-जुनूँ देखे ज़माना
और उस की है तंबीह तमाशा नहीं करना
ख़ुर्शीद अम्बर प्रतापगढ़ी
ग़ज़ल
बा-कमाल थे 'अम्बर' फिर भी हम रहे गुमनाम
बे-हुनर के हिस्से में सैकड़ों ख़िताब आए
ख़ुर्शीद अम्बर प्रतापगढ़ी
ग़ज़ल
शुआएँ निकलती हैं शे'रों से 'अम्बर'
चढ़ाते हो लफ़्ज़ों पे तुम आब-ए-ज़र क्या
ख़ुर्शीद अम्बर प्रतापगढ़ी
ग़ज़ल
मैं बहर-ए-ज़ीस्त में मिस्ल-ए-हबाब हूँ 'अम्बर'
मिरे वुजूद का मक़्सद ब-जुज़ फ़ना क्या है
अम्बर देहलवी
ग़ज़ल
औरों पे तो उन के हैं अल्ताफ़-ओ-करम पैहम
'अम्बर' हैं ज़माने में हम वक़्फ़-ए-अलम तन्हा
अम्बर देहलवी
ग़ज़ल
अब न 'अम्बर' कोई दोहराए ग़म-ए-हस्ती की बात
वर्ना ये दर्द-ए-जिगर बार-ए-गराँ हो जाएगा
ज़हूर अम्बर कुरैशी
ग़ज़ल
क्या जाने क़ातिलों को नहीं है कि है ख़बर
बहर-ए-तवाफ़ आएगा 'अम्बर' गली में कल