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ग़ज़ल
ज़िंदगी के दश्त में आया न जब अक्स-ए-बहार
मैं ने ख़ुद को ख़ुद दिखाया वहशतों का सिलसिला
बहारुन्निसा बहार
ग़ज़ल
नाख़ुदा से क्या ग़रज़ परवर्दा-ए-तूफ़ाँ हूँ मैं
मौज के दामन में आता है नज़र साहिल मुझे
शिवराज बहार
ग़ज़ल
मैं ने 'बहार' इक वो गुल चुन लिया काएनात में
जिस की हर इक अदा मुझे फ़िक्र-ए-ग़ज़ल नवाज़ दे
शिवराज बहार
ग़ज़ल
जमाल-ए-शाहिद-ए-फ़ितरत का पर्दा-दार हूँ मैं
गुलों की क्या हो तमन्ना कि ख़ुद बहार हूँ मैं
शिवराज बहार
ग़ज़ल
तितलियों को रोक लो जाने न दो बाद-ए-सबा
अब 'बहार'-ए-बे-ख़िज़ाँ का है गुज़ारा रेत पर
बहारुन्निसा बहार
ग़ज़ल
हज़रत-ए-अय्यूब को क्या पढ़ लिया तुम ने 'बहार'
साबिरों की ज़िंदगी पर तब्सिरा करने लगे