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ग़ज़ल
आओ तुम्हारी नज़्र करें हम एक चराग़ हिकायत का
जब तक जागो रौशन रखना नींद आए तो बुझा देना
इरफ़ान सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
सूरत-ए-ज़ाहिद न जागो हज़रत-ए-दिल सो रहो
क़िबला-ए-मन काबा-ए-मक़्सूद दिखलाती है नींद
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
ग़ज़ल
नसीम देहलवी
ग़ज़ल
नहीं है एक हर्फ़-ए-तल्ख़ की जागो मिरे दिल में
मगर पूछो तो शिकवों के अभी दफ़्तर निकलते हैं
रशीद लखनवी
ग़ज़ल
ये साज़िश-ए-तग़य्युर है कितनी जान-लेवा
मुझ को जगा के मेरी तक़दीर सो गई है