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ग़ज़ल
ख़ुद मिला और मिल के वो अपना पता भी दे गया
जबकि सारी काविशों को राएगाँ समझा था मैं
चन्द्रभान ख़याल
ग़ज़ल
यार मुझ को देख ज़ा रोना तो उन सा हिज्र में
मुश्फ़िक़ाना कुछ नसीहत जबकि फ़रमाने लगे
रंगीन सआदत यार ख़ाँ
ग़ज़ल
गए सर से जबकि वो ता-कमर तो अलिफ़ इधर का हुआ उधर
तिरा जोड़ा खुलते ही बाल सब पस-ए-पुश्त आ के बला हुए