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ग़ज़ल
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
क़ाइल ब-दिल हूँ तब अमल-ए-हुब का मैं कि जब
उस शोख़ से ब-जद्द-ओ-कद-ए-आमिलाँ मिलूँ
जुरअत क़लंदर बख़्श
ग़ज़ल
दस्त-ए-क़ातिल में कोई तेग़ न ख़ंजर होता
मिरा साया जो मिरे क़द के बराबर होता
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
किसी के जाल में आ कर मैं अपना दिल गँवा बैठा
मुझे था इश्क़ क़ातिल से मैं अपना सर कटा बैठा
बाबर रहमान शाह
ग़ज़ल
असर करता नहीं बिन सज्दा-ए-तस्लीम के नाला
हम इस मिस्रा पे ग़ैर-अज़-हल्क़ा-ए-क़द साद क्या कीजे
वली उज़लत
ग़ज़ल
दिलों में बैठ गया बरहमन का हुस्न-ए-बयाँ
हदीस-ए-शैख़ तिलिस्मात-ए-रद्द-ओ-कद में रही
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
ग़ज़ल
आशिक़-ए-गेसू-ओ-क़द तेरे गुनहगार हैं सब
मुस्तहिक़ दार के फाँसी के सज़ा-वार हैं सब
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
अहल-ए-रद्द-ओ-कद ने सौ तफ़्सीर की इक लफ़्ज़ की
पर न समझे कि नबी का मुद्दआ' कुछ और है
इफ़्फ़त अब्बास
ग़ज़ल
फ़रोग़-ए-सनअत-ए-क़द-आवरी का मौसम है
सुबुक हुए पे भी निकला है क़द्द-ओ-क़ामत क्या
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ग़ज़ल
क़िस्सा-ए-दार-ओ-रसन या क़िस्सा-ए-गेसू-ओ-क़द
कुछ तो छेड़ो वक़्त भी है रंग पर महफ़िल भी है
राही शहाबी
ग़ज़ल
झुकेगी रफ़्ता रफ़्ता शाख़-ए-नख़्ल-ए-क़द कमाँ हो कर
खिंचेगा तूल फ़ुर्क़त का ज़ह-ए-तीर-ए-फ़ुग़ाँ हो कर