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ग़ज़ल
उसे पढ़ के तुम न समझ सके कि मिरी किताब के रूप में
कोई क़र्ज़ था कई साल का कई रत-जगों का उधार था
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
इन्दिरा वर्मा
ग़ज़ल
चार चुप चीज़ें हैं बहर-ओ-बर फ़लक और कोहसार
दिल दहल जाता है इन ख़ाली जगहों के सामने
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
रत-जगों में गूँजने वाली सदाएँ किस की हैं
है हुनर किस के लिए अर्ज़-ए-हुनर किस के लिए