aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "jaka.D"
अज़दहा बन के रग-ओ-पै को जकड़ लेता हैइतना आसान नहीं ग़म से रिहा हो जाना
ये और बात कि महसूस तक न होने दूँजकड़ सी लेती है दिल को तिरी कोई कोई बात
तू इश्क़ के तूफ़ान को बाँहों में जकड़ लेअल्लाह करे ज़ोर-ए-शबाब और ज़ियादा
वक़्त को माह-ओ-साल की ज़ंजीरों में जकड़ कर क्या पाया हैवक़्त तो माह-ओ-साल की ज़ंजीरों में और भी तेज़ बढ़ा है
ग़ुलामी में जकड़ लेगा कोई फिरवतन ऐसे ही गर लुटता रहा तो
ज़ुल्फ़ को क्यूँ जकड़ के बाँधा हैउस ने बोसा लिया था गाल का क्या
जकड़ के साँसों में तश्हीर हो रही है मिरीमैं एक क़ैद सिपाही हूँ जंग हारा हुआ
धर्म और ज़ात की जकड़ ऐसीपर तो हैं पर उड़ा नहीं हूँ मैं
जैसे-तैसे किसी पे मरता हूँज़िंदगी ने जकड़ रखा है अभी
मैं घूम फिर के उसी सम्त आ निकलता हूँजकड़ रही है तिरे घर की रहगुज़र मुझ को
उठते हैं क़दम जब भी किसी दश्त की जानिबक़दमों को जकड़ लेती है आवाज़ किसी की
दिल को जकड़ के बैठा है ये कौन सा मलालहम ख़ुश नहीं हैं तेरी बधाई के बा'द भी
दश्त-ए-इम्काँ से परे वक़्त के दर पर पहुँचूँएक लम्हे को जकड़ लूँ उसे पल पल देखूँ
सब्र-ओ-ख़ामोशी की ज़ंजीर जकड़ लेती हैअब कलाई में बग़ावत के कड़े होते नहीं
ज़रूरत को जकड़ कर सब्र की ज़ंजीर में रखनानहीं तो भूक ख़ुद्दारी को इक दिन बेच खाएगी
तुझे जकड़ ले कभी सलीक़ा यही नहीं हैहै जी में सब नोच कर निगाहों के तार रख दें
जकड़ रखा था फ़ज़ा को हमारे नारों नेजो लब ख़मोश हुए तो दिलों में डर जागे
अभी कुछ और जकड़ दुश्मनी की बंदिश मेंलहू का ज़ाइक़ा ज़ंजीर में नहीं आया
देखना यूँ मैं तिरे दिल में उतर सकता हूँमुझ को फंदे में तिरे नैन जकड़ सकते हैं
कर्ब ज़ंजीर की मानिंद जकड़ लेता हैभाई को सहना ही पड़ता है अगर भाई करे
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