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ग़ज़ल
तेरे होते हुए महफ़िल में जलाते हैं चराग़
लोग क्या सादा हैं सूरज को दिखाते हैं चराग़
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
तुझ से जलता है जो वो और जलाते हैं उसे
मिरे हक़ में मिरे दुश्मन की 'अदावत अच्छी