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ग़ज़ल
पूछा कि दोज़ख़ की जलन बोले कि सोज़-ए-दिल तिरा
पूछा कि जन्नत की फबन बोले तरह-दारी मिरी
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
सुब्ह के दर्द को रातों की जलन को भूलें
किस के घर जाएँ कि इस वा'दा-शिकन को भूलें
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
इंसाफ़ मोहब्बत सच्चाई वो रहम-ओ-करम के दिखलावे
कुछ कहते ज़बाँ शरमाती है पूछो न जलन मेरे दिल की
शैलेन्द्र
ग़ज़ल
न आँखों में वो पहले सा कोई फ़व्वारा उठता है
न सीने में वो पहली सी जलन महसूस होती है