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ग़ज़ल
हम ने दिल को मार रखा है और जताते फिरते हैं
हम दिल ज़ख़्मी मिज़्गाँ ख़ूनीं हम न हुए जल्लाद हुए
जौन एलिया
ग़ज़ल
कर दूँगा अभी हश्र बपा देखियो जल्लाद
धब्बा ये मिरे ख़ूँ का छुड़ाना नहीं अच्छा
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
क़तरा-हा-ए-ख़ून-ए-बिस्मिल ज़ेब-ए-दामाँ हैं 'असद'
है तमाशा करदनी गुल-चीनी-ए-जल्लाद याँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
जिस पे मरता हूँ उसे देख तो लूँ जी भर के
इतनी जल्दी तू मिरे क़त्ल में जल्लाद न कर
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
क्या गुनह क्या जुर्म क्या तक़्सीर मेरी क्या ख़ता
बन गया जो इस तरह हक़ में मिरे जल्लाद तू