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ग़ज़ल
अज़ल में हो न हो ये जल्वा-गाह-ए-रू-ए-जानाँ था
कि सुब्ह-ए-हश्र भी ख़ुर्शीद का आईना लर्ज़ां था
बेख़ुद मोहानी
ग़ज़ल
ग़म तिरा जल्वा-गह-ए-कौन-ओ-मकाँ है कि जो था
या'नी इंसान वही शो'ला-ब-जाँ है कि जो था
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
अव्वल तो जल्वा-गाह में दिल की बिसात क्या
दिल है जुनूँ-नवाज़ तो फिर एहतियात क्या
इफ़्तिख़ार अहमद सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
अब इम्तियाज़-ए-जल्वा-गह-ओ-जल्वा-गर कहाँ
मेरी नज़र में पर्दा-ए-शम्स-ओ-क़मर कहाँ
अमजद अली ग़ज़नवी
ग़ज़ल
जल्वा-गाह-ए-दिल में मरते ही अँधेरा हो गया
जिस में थे जल्वे तिरे वो आइना क्या हो गया
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
दिल है हक़ीक़त-आश्ना जल्वा-गह-ए-मजाज़ में
हुस्न-ए-अज़ल है मुस्ततर इश्क़ की सोज़-ओ-साज़ में
साक़िब रामपुरी
ग़ज़ल
चमके हैं सब के बख़्त तिरी जल्वा-गाह में
वाँ कुछ नहीं तमीज़ सफ़ेद-ओ-सियाह में
मुंशी बिहारी लाल मुश्ताक़ देहलवी
ग़ज़ल
ये दिल ही जल्वा-गाह है उस ख़ुश-ख़िराम का
देखा तो सिर्फ़ नाम है बैत-उल-हराम का
ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
होश नहीं है दोश का जल्वा-गह-ए-नमाज़ में
सर ही का कुछ पता नहीं सज्दा-ए-बे-नियाज़ में